Tuesday 4 August 2020

संविधान से मुलाकात By Piyush Kumar Roy

लोकतंत्र की गलियों में, सहमा संविधान मिला,

सफ़ेद कुर्ते ने तो कभी काले कोट ने मलिन कर दिया जिसका मंत्र

मुल्क का ऐसा दस्तावेज मिला।

दुराचार से उठे कोलाहल सुन

संविधान से सवाल पूछा- तुमने तो व्यवस्था बहाल करने का बेडा उठाया था?

जमुरिय्त के जुमलो से लाचार हो उसने कहा- तेरे सत्ताधिसों ने मेरा बेडा गर्ग कर दिया।

          

मैंने पूछा इन प्रजाओं का क्या होगा?

इठला कर उसने जवाब दिया – पूछो उन मतदाताओं से क्यू प्रलोभन में फंस दुराचारियों के पास गिरवी रख आये?

मैं तो चला ही था स्वतंत्रता का कारवां ले कर,

क्यू मुझे आजादी के ठेकेदारों के काफिले में छोड़ आये ?


मैंने कहा- पर तुम तो संसद से लेकर न्यायपालिका तक के नींव हो

तुम्हारे शब्दों के कौतुहल से ये इमारते गूंजती हैं।

उपहास उड़ा मेरा उसने कहा – कौन संसद, जहां सत्ता ने मेरा सौदा किया, तो कभी विपक्ष ने रौंध दिया ?

अरे कौन न्यायपालिका जो दशको से मेरे अर्थ का अनर्थ बनाती रही,

देख कठगरे की हैसियत अपने ही फैसले; सिद्धांतों को उलटती- पलटी रही ।




मैंने पूछा तो क्या भूल जाएँ तुम्हारे मूल मंत्रो को?

भर स्वर में हुंकार उसने कहा –

लौटा फिर मुझे भगत सिंह जैसे को; मेरे ख्वाब में जिसने फांसी को चूम लिया,

सौंप दो उस गाँधी को जिसकी लाठी किसी दुर्बल पर ना बरसी थीं,

कर आजाद मुझे आलिन्दो से, रख दो झोपड़ियों में;

एक बार तो हवाले करो निस्वार्थ स्वलाम्वियों के संरक्षण में ।


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